ऐसी
पौराणिक
कहानियाँ हैं जो इंगित करती हैं कि सुरों ने असुरों को गुलाम बना लिया था.
ये गुलाम जातियाँ भारत में जारी जातिप्रथा के उन्मूलन के लिए संघर्षशील
हैं. उन्हें उनकी जाति के कारण ही ग़रीब रखने की कोशिशें होती हैं. इन्हें
अन्य पिछड़ी जातियाँ, अनुसूचित
जातियाँ और अनुसूचित जनजातियाँ कहा जाता है. इन्हें अभी जानकारी नहीं है कि मानवाधिकार
क्या
होते हैं. यह तथ्य है कि भारत के मूलनिवासी गुलाम या दास बना लिए गए थे और
सदियों से वे अमानवीय स्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं. इनकी अधिकतर आबादी गाँवों में रहती है. अगाडी जातियाँ शेष विश्व के लिए भारत की बहुत
अच्छी तस्वीर बनाती हैं कि जैसे भारत से गुलामी मिट गई है. लेकिन यह सच्चाई से बहुत है. दुनिया भी तथ्यों जानती-समझती है.
इस
बीच एक ब्लॉगर डोरोथी ने अपने एक कमेंट के द्वारा बताया था कि पूर्वी भारत की कोल
जनजाति भी अपना उद्गम सिंधुघाटी सभ्यता को मानती है. इस बारे में मुझे एक लिंक
मिला- ‘दि इंडियन एनसाइक्लोपीडिया’
जिसे इस आलेख में 'Other Links’
के अंत में दिया गया है. इसमें पर्याप्त व्याख्या है.
इससे यह भी सिद्ध होता है कि भारत के मूलनिवासियों को जनजातियों और जातियों में
अलग-अलग नामों से बाँटना भी एक नकली चीज़ है. मूलतः वे एक ही वंश के हैं.
कोली, कोरी और कोल भारत के मूल निवासी हैं.
इनका अतीत एक है. उन्हें मनुस्मृति के प्रावधानों के तहत अलग-अलग
नाम और व्यवसाय दिए गए और उन्हें अलग-अलग समुदाय कहा गया ताकि वे अपने भाइयों से दूर रहें.
धीरे-धीरे वे आपसी पहचान भूल गए. देश में लोकतंत्र होने के बावजूद ये अभी इतने अशिक्षित और इतने दबाव
में हैं कि अपनी सामाजिक और राजनीतिक एकता (सत्ता) के बारे में सोच नहीं पाते.
कुल
मिला कर मेघवाल, बुनकर, मेघ, भगत, जुलाहा, अंसारी
आदि
समुदायों की भाँति कोली और कोरी भी पारंपरिक रूप से जुलाहे हैं. सरकारी
नीतियों के कारण इनका यह परंपरागत व्यवसाय तबाह हो चुका है और इनकी
आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी है. इनकी बहुत बड़ी आबादी कुपोषण और भूख
की शिकार है.
ये अत्यल्प वेतन पर और बेगार (Forced labor)
के तौर पर कार्य करते हैं. (कोल शब्द अफ़्रीकी मूल का माना जाता है.
ऐसा प्रतीत होता है कि कोली शब्द कोल से ही बना है). ख़ैर, आप
इस आलेख के अंश पढ़ना जारी रखें और इन विश्वसनीय तथा प्यारे कोली/कोरी लोगों के
बारे में जाने.
(विशेष नोट - इस आलेख में कुछ मिथकीय पात्रों का नाम है जैसे - वाल्मीकि, राम. जिनका अस्तित्व ऐतिहासिक दृष्टि से विवादित है. इसके बावजूद यह पठनीय आलेख है.)
(विशेष नोट - इस आलेख में कुछ मिथकीय पात्रों का नाम है जैसे - वाल्मीकि, राम. जिनका अस्तित्व ऐतिहासिक दृष्टि से विवादित है. इसके बावजूद यह पठनीय आलेख है.)
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अशोक महान कोरी कबीले से थे |
कोली (Story
Of India’s Historic People - The Kolis)
“एक
समय आता है जब हममें से प्रत्येक व्यक्ति पूछता है, ‘मैं
कौन हूँ?
मेरे पुरखे कौन थे? वे कहाँ से आए थे?
वे कैसे रहते थे? उनकी बड़े कार्य क्या थे और उनके
सुख-दुख क्या थे?’ ये और अन्य कई मूलभूत सवाल हैं जिनके
बारे में हमें उत्तर पाना होता है ताकि हम अपने मूल को पहचान सकें.
भारत
के मूलनिवासी कबीलों के बारे में अध्ययन करते हुए हमारे विद्वानों ने अति प्राचीन
रिकार्ड और दस्तावेज़ – वेद, पुराण, विभिन्न
भाषाओं के महाकाव्य, कई पुरातात्विक रिकार्ड और नोट्स और
अन्यान्य प्रकाशन देखे हैं.
इतिहास
और एंथ्रपॉलॉजी के विद्यार्थियों ने प्रागैतिहासिक और भारत के स्थापित इतिहास में
भारत के प्राचीन कबीले का चमकता अतीत पाया है और शोध की निरंतरता में और भी बहुत
कुछ मिल रहा है.
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भगवान वाल्मीकि और उनकी रामायण |
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ईश बुद्ध |
ईश
बुद्ध की पत्नी कोली कबीले से थी. महान राजा चंद्रगुप्त मौर्य और उसके कुल के राजा
कोली कबीले के थे. संत कबीर, जो पेशे से जुलाहे थे, के
कई भजनों में लिखा है- “कहत कबीर कोरी”, उन्होंने
स्वयं को कोरी कहा है. सौराष्ट्र के भक्तराज भदूरदास और भक्तराज वलराम, जूनागढ़
के गिरनारी संत वेलनाथजी, भक्तराज जोबनपगी, संत
श्री कोया भगत, संत धुधालीनाथ, मदन
भगत,
संत
कंजीस्वामी जो 17वीं और 18वीं शताब्दी के थे, ये
सभी कोली कबीले के थे. उनके जीवन और ख्याति के बारे में 'मुंबई
समाचार',
'नूतन गुजरात', 'परमार्थ' आदि
में छपे आलेखों से जानकारी मिलती है.
महाराष्ट्र
राज्य में शिवाजी के प्रधान सेनापति और कई अन्य सेनापति इसी कबीले के थे. ‘A
History of the Marathas’ (मराठा इतिहास) मुख्यतः मवालियों और
कोलियों से भरी शिवाजी की सेना का शौर्य गर्वपूर्वक कहता है. शिवाजी का सेनापति
तानाजी राव मूलसरे जिसे शिवाजी हमेशा ‘मेरा
शेर’
कहा करते थे, एक कोली था. जब तानाजी ‘कोडना
गढ़’
को जीतने के लिए लड़ी लड़ाई में शहीद हुआ तो शिवाजी ने उसकी स्मृति में उस किले का
नाम बदल कर ‘सिंहाढ़’
रख दिया.
हमारे
प्राचीन राजा मन्धाता की कथा
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ओंकारनाथेश्वर में मन्धाता मंदिर |
कहा
जाता है कि श्री राम का जन्म मन्धाता के बाद 25वीं पीढ़ी में हुआ था. एक अन्य राजा
ईक्ष्वाकु सूर्यवंश के कोली राजाओं में हुए हैं अतः मन्धाता और श्रीराम ईक्ष्वाकु
के सूर्यवंश से हैं. बाद में यह वंश नौ उप समूहों में बँट गया, और
सभी अपना मूल क्षत्रिय जाति में बताते थे. इनके नाम हैं: मल्ला, जनक, विदेही, कोलिए, मोर्या, लिच्छवी, जनत्री, वाज्जी
और शाक्य.
पुरातात्विक
जानकारी को यदि साथ मिला कर देखें तो पता चलता है कि मन्धाता ईक्ष्वाकु के सूर्यवंश
से थे और उसके उत्तराधिकारियों को ‘सूर्यवंशी
कोली राजा’ के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है
कि वे बहादुर, लब्ध प्रतिष्ठ और न्यायप्रिय शासक थे.
बौध साहित्य में असंख्य संदर्भ हैं जिससे इसकी प्रामाणिकता में कोई संदेह नहीं रह
जाता. मन्धाता के उत्तराधिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हमारे प्राचीन
वेद,
महाकाव्य
और अन्य अवशेष उनकी युद्धकला और राज्य प्रशासन में उनके महत्वपूर्ण योगदान का
उल्लेख करते हैं. हमारी प्राचीन संस्कृत पुस्तकों में उन्हें कुल्या, कुलिए, कोली
सर्प,
कोलिक, कौल
आदि कहा गया है.
प्रारंभिक
इतिहास – बुद्ध के बाद
वर्ष
566 ई.पू. के दौरान, जब हिंदू धर्म निर्दयी हो चुका था और
पूर्णतः पतित हो चुका था, तब राजकुमार गौतम जिसे बाद में विश्व ने
बुद्ध (the
enlightened one) के रूप में जाना,
का जन्म उत्तर-पश्चिमी भारत में हिमायलन घाटी में रोहिणी नदी के किनारे हुआ. ईश
बुद्ध की माता महामाया एक कोली राजकुमारी थीं.
ईश
बुद्ध की शिक्षा को ऊँची जाति के हिंदुओं के निहित स्वार्थ के लिए ख़तरे के तौर पर
देखा गया. शीघ्र ही बुद्ध की शिक्षाओं को भारत से पूरी तरह बाहर कर दिया गया.
ऐसा
प्रतीत होता है कि कोली साम्राज्यों का बुद्ध से संबंध और प्रेम होने के कारण
उन्हें सबसे अधिक अत्याचार सहना पड़ा. यद्पि अधिकतर लोगों ने बौध शिक्षा को नहीं
अपनाया था लेकिन अन्य ने उन्हें दूर किया और शासकों ने भी उनकी उपेक्षा की.
ईश
बुद्ध के 2000 वर्ष बाद
इस
संघर्ष ने कोली साम्राज्यों को बहुत हानि पहुँचाई होगी. ऐसा प्रतीत होता है कि
बहुत ही क्लिष्ट हिंदू समाज में पदच्युति के बाद कभी बहुत शक्तिशाली रहा यह कबीला, जो
बहुत परिश्रमी, कुशल, निष्ठावान्, आत्मनिर्भर
साथ ही आसानी से भड़क कर युद्ध पर उतारू होने वाला था, अपनी
केंद्रीय स्थिति खो बैठा. एक समाज जिसने अपनी देवी मुंबा देवी के नाम से मुंबई की
स्थापना और निर्माण किया उसे आज राजनीतिक और शिक्षा की प्रभावी स्थिति में आना
कठिन हो गया है. अब तो कई शताब्दियों से अन्य कबीलों ने इसे नीची नज़र से देखा और
इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव इस समस्त क्षत्रिय समुदाय को तबाह करने वाला था.
वर्तमान
आज
के भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक कोली पाए जाते हैं और क्षेत्रीय भाषा के
प्रभाव के कारण उनके नाम तनिक परिवर्तित हो गए हैं. कुछ मुख्य समूह इस प्रकार हैं: कोली
क्षत्रिय,
कोली
राजा,
कोली
राजपूत,
कोली
सूर्यवंशी, नागरकोली, गोंडाकोली, कोली
महादेव,
कोली
पटोल,
कोली ठाकोर, बवराया, थारकर्ड़ा, पथानवाडिया, मइन
कोली,
कोयेरी, मन्धाता
पटेल आदि.
भारत
के मूलनिवासी कबीले के तौर पर खुले कृषि भू-भागों और समुद्र तटीय क्षेत्रों में
रहने को पसंद करने वाला यह क्लैन्ज़मन है. आज के कोली कई कबीलाई अंतर्विवाहों से
हैं. अनुमान लगाया गया है कि जनगणना में 1040 से भी अधिक उप-समूह हैं जिन्हें एक
मुश्त रूप से कोली कहा जाता है. हिंदू होने के अतिरिक्त इन अधिकांश समूहों में
सामान्य कुछ नहीं है, और कि ऊँची जाति के हिंदुओं यह स्वीकार
करते हैं कि कोली स्पर्श से वे भ्रष्ट नहीं होते और शुद्ध वंश के कोली मुखियाओं की
क्षत्रिय राजपूतों से अलग पहचान करना कठिन है जिनके साथ उनके नियमित अंतर्विवाह
होते हैं.
गुजरात
के कोली
लेखक द्वय अंथोवन और डॉ. विल्सन मानते हैं कि गुजरात में मूलरूप से बसने वाले कोली और आदिवासी भील थे. रायबहादुर हाथीभाई देसाई पुष्टि करते हैं कि यह 600 वर्ष पूर्व शासक वनराज के समय में था. गुजराती जनसंख्या में बिल्कुल अलग जातीय समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले या तो वैदिक हैं या द्रविडियन हैं. इनमें नागर ब्रह्मण, भाटिया, भडेला, कोली, राबरी, मीणा, भंगी, डुबला, नैकडा, और मच्छी खारवा कबीले हैं. मूलतः पर्शिया से आए पारसी बहुत बाद में आए. शेष आबादी मूलनिवासी भीलों की है.
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डाँडी मार्च |
निष्कर्ष
अपनी
वर्तमान स्थिति के लिए हम उच्च जातिओं पूरी तरह दोष नहीं दे सकते. इतिहास में यह
होता आया है कि कभी शक्तिशाली रहे लोग पतन को प्रात हुए और पूरी तरह अदृश्य हो गए
या अकिंचन बना दिए गए. इस संसार में जहाँ ‘योग्ययतम
की जीत’
का नियम है वहाँ लोगों को महान प्रयास करने होते हैं और कुर्बानियाँ देनी होती हैं
ताकि वे बुद्धिमान नेतृत्व में एक हों और फिर से इतिहास लिखना शुरू करें.
हमारे
पास हज़ारों स्नातक और व्यवसायी हैं, उच्च
योग्यता वाले डॉक्टर, डेंटिस्ट, वकील
और कुशल टेक्नोक्रैट हैं जो भारत और अन्य देशों में रह रहे हैं. वे सभी अपनी
कुशलता का प्रयोग पैसा बनाने और भौतिक पदार्थों और अन्य छोटे सुखों के लिए कर रहे
प्रतीत होते हैं. भौतिक सुविधाएँ आवश्यक हैं परंतु हमारी प्राथमिकता अपने धर्म, संस्कृति
और परंपरा को बचाने की भी अवश्य होनी चाहिए.
हमारी
वर्तमान पीढ़ी के संपन्न लोग स्वयं को अपने समाज के मशालची के तौर पर देखें और ऐसे
सभी प्रयास करें कि आपसी संवाद स्थापित हो, एकता
हो और अपने अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त करने की ज़बरदस्त शक्ति बना जाए. अब यह
हमारे लिए चुनौती है.”